मैं तो चल ही रहा था,
एकटक मंजिल की ओर।
ना इधर- ना उधर,
भेड़ चाल से अलग,
अपने सपने को बुनते हुवे
आपकी दिल की सुनते हुवे।
मैं तो चल ही रहा था…
हाँ! ज़माने के साथ नहीं था,
दिखावा भी पास नहीं था,
अपनी ही अकड़ में, अपनी ही मस्ती में।
समाज के ताने-बाने से अलग,
किसी को खुश करने के लिए ही नहीं बस।
बस ख़ुशी की ख़ातिर
मैं तो चल ही रहा था,
कोई रुका ही नहीं।।
कोई रुका ही नहीं
March 30, 2020 by mukeshbora
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